साखी - संग्रह

श्री गुरु जम्भेश्वर जी महाराज  साखी

 

साखी (1)आवो मिलो जुमलै जुलोसिंवरों सिरजणहार।
सतगुरु सतपंथ चालियाखरतर खाण्डे धार।।
जम्भेश्वर जिभिया जपोभीतर छोड़ विकार।
सम्पति सिरजणहार कीविधि सूं सुणो विचार।।
अवसर ढील न कीजिएभले न लाभे वार।
जमराजा वासे बह तलबी कियो तैयार।।
चहरी वस्तु न चाखियो उर पर तज अहंकार।
बाड़े हूंता बीछडय़ा जांरी सतगुरु करसी सार।
सेरी सिंवरण प्राणियां अन्तर बड़ो आधार।।
पर निंदा पापां सिरे भूल उठावै भार।।
परलै होसी पाप सूं मुरख सहसी मार।
पाछे ही पछतावसी पापां तणी पहार।।
ओगण गारो आदमी इला रहे उरभार।
कह केसो करणी करो पावो मोक्ष द्वार।।

 

 

साखी (2)तारणहार थला सिर आयो जे कोई तरै सो तरियो जीवनै।
जे जीवड़ा को भलपण चाहो सेवा विष्णु की करियो जीवनै।
मिनखा देही पड़े पुराणी भले न लाभै पुरियो जीवनै।
अड़सठ तीरथ एक सुभ्यागत घर आये आदरियो जीवनै।
देवजी री आस विष्णु जी री संपत कूड़ी मेर न करियो जीवनै।
रावा सूं रंक रंके राजिन्दर हस्ती करे गाडरियो जीवनै।
ऊजड़वासा बसे उजाड़ा शहर करैं दोय घरियो जीवनै।
रीता छालै छला रीतावै समन्द करै छीलरियो जीवनै।
पाणी सूं घृत कुड़ी सु कुरड़ा सो घीता बाजरियो जीवनै।
कंचन पालट करै कथीरो खल-नारेला गिरियो जीवनै।
पांचा क्रोडय़ा गुरु प्रहलादो करणी सीधो तरियो जीवनै।
हरिचंद राव तारा दे राणी सत सूं कारज सरियोजीवनै।
काशी नगरी में करण कमायो साह घर पाणी भरियो जीवनै।
पांचू पांडू कुन्ता दे माता अजर घणेे रो जरियो जीवनै।
सत के कारण छोड़ी हस्तिनापुर जाय हिमालय गरियो जीवनै।
कलियुग दोय बड़ा राजिन्दर गोपिचन्द भरथरियो जीवनै।
गुरु वचने जोगुंटो लियो चुको जामणा मरियो जीवनै।
भगवीं टोपी भगवी कंथा घर-घर भिक्षा नै फिरियो जीवनै।
खांड़ी खपरी ले नीसरियो धौल उजीणी नगरियो जीवनै।
भगवी टोपी थल सिर आयो जो गुरु कह सो करियो जीवनै।
तारणहार थला सिर आयो जे कोई तरै सो तरियो जीवनै।

 

 

साखी (3)विष्णु विसार न जाय रे प्राणी,तिंह सिर मोटो दावो जीवनै। टेर।
दिन-दिन आव घटंती जावे लगन लिख्यो ज्यूं सावो जीवनै।
काला रूंह कलेवर उठा,आयो(छै) बुग बधावो जीवनै।
पालटियो गढ काय न चेत्यो,घाती रोल भनावो जीवनै।
ज्यों-ज्यों लाज दुनी की लाजैत्यों-त्यों दाब्यो दावो जीवनै।
भलो हुवै सो करे भलाईबुरियो बुरी कमावै जीवनै।
दिन को भूल्यो रात न चेत्योदूर गयो पछितावै जीवनै।
गुरुमुख मूर्खा चढै न पोहणमन मुख भार उठावै जीवनै।
धन को गरब न कर रे मूर्खानत धणियां ने भावै जीवनै।
हुकम धणी को पान भी डूबे सिला तिर ऊपर आवै जीवनै।
षिण ही मासो षिण  ही तोलोषिण वाइंदो वावै जीवनै।
षिण  ही जाय निरंतर बरसेषिण ही आप लखावै जीवनै।
षिण  ही राज दियो दुर्याधनलेता वार न लावै जीवनै।
षिण  ही मेघ मंडल होय बरसैषिण  चोबायो बाबै जीवनै।
सोवन नगरी लंक सरीखीसमंद सरीखी खाई जीवनै।
महारावण सा बेटा जिंहि केकुंभकरण सा भाई जीवनै।
जर जंवराणा सांकल बांध्याकुवे मौत संजोई जीवनै।
जिण रे पवन बुहारी देतोसूरज तपै रसोई जीवनै।
वासंदर ज्यारां कपड़ा धोवेकोदू दल वहाई जीवनै।
नवग्रह रावण पाये बंध्याफेरी आपण राई जीवनै।
तिण हुं विसनजी री खबर न पाईजांतै वार न लाई जीवनै।
जिण रे पाट मंदोदर राणीसाथ न चाली साई जीवनै।
गुरु प्रसादे हुयो पोह बीदोमानी विसन दुहाई जीवनै।
चांद भी शरण सूर भी शरणैशरणै मेर सवाई जीवनै।
धरती अरू असमान भी शरणैपवन भी शरणं वाई जीवनै।
सुर आकाशे शेष पयालेसतगुरु कहे तो आवै जीवनै।
भगवीं टोपी थल सिर आयोकरियो जो फुरमावै जीवनै।

 

 

साखी (4)अहरण नाहिं हथोड़ा नाहिंपाणी सूं खालक राजा पिंड घड़े रे।
नाकै सास लेवो मुख बोलो,श्रवणे सांभलो ज्यों सुरति पड़े रे।
नेण चलण रतनागर दीनाकौण स दाता देव बड़ रे।
विष्णु-विष्णु तूं जप रे जिवड़ाअबक आयो जन्म रूड़े रे।
ले माला हरि जाप न कीयोजपतां री मुखां जीभ अड़े रे।
पापां रे पसायो जीवड़ा दौरे जैलोउत कण अफरी तेरे मार पड़े रे।
गाडरियो हुवैलो कीच में पड़ेलोझाटकणां री थारे झूर पड़े रे।
करवलियो हुवैलो फिरलो कतारेभार उठावे लड़े छड़े रे।
दसां मणां री तेरे गुण पड़़ेलीऊपर ओठी कूद चड़े रे।
हाली के घर धोरी हुवैलोमार सहेली तीखी गड़े रे।
ओडा के घर पोहणियों हुवैलो,ले ले बोरी पाल चड़े रे।
सुअरियो हुवैलो शहरे फिरैलोठरड़क -ठरड़क तेरी नास करे रे।
कूकरियो हुवैलो गलियां में फिरैलो,आवे बटाऊ झबक लड़े रे।
कंवलियो हुवैलो गिगन भुंवैलोकुरंग ऊपर तेरी चांच पड़े रे।
जब लग जीवड़ा तैं सुकरत न कियोज्यूं ज्यूं नान्हीं जूण पड़े रे।
ऊदो भणे रे जपो निज नामीदेव नहीं कोई जंभ धड़ रे।

 

 

साखी (5)मिनखा देही है अणमोलीभजन बिना वृथा क्यूं खोवे।
भजन करो गुरु जम्भेश्वर काआवागवण का दुखड़ा खोवे।
गर्भवास में कवल किया थाकवल पलटे हरि विमुख होवे।
बालपणे बालक संग रमियोजवान भयो नारि बस होवे।
चालीसां में तृष्णा जागीमोह माया में पड़कर सोवे।
बेटा पोता और पड़पोताहस्ती घोड़ा बग्घी होवे।
धन कर ऐश करूं दुनियां मेंमेरे बराबर कोई न होवे।
गर्व गुमान करै मत प्राणीगर्व कियो हिरणाकुश रोवे।
गर्व कियो लंकापति रावण सीता हड़कर लंका खोवे।
सच्चा पायक रामचन्द्र काहनुमान बलकारी होवे।
तन में तीरथ न्हाव त्रिवेणीज्ञान बिना मुक्ति नहीं होवे।
ज्ञान हीं बन के मृगे नेकिस्तूरी बन बन में टोवे।
अड़सठ तीरथ एक सुभ्यागतमात पिता गुरु सेवा से होवे।
दोय कर जोड़ ऊदो जन बोलेआवागवण कदे न होवे।

 

 

साखी (6)जागो मोमणो नां सोवो न करो नींद पियार।
जैसा सुपना रैण का ऐसो ओ संसार
केई सुभागो आम्बो रोपियो भगवत के दरबार।
पींघ पड़ैली आम्बे सोवनी हींडै कै शुचियार।
एकणि डाली हुं चढ़ी दूजे मोमण बीर।
जिण तो डाले हूं चढी तिणी घणेरी भीड़।
हाथां रो मूंदड़ो गिर पडय़ो कांनारी नवरंग बीड़।
काज पराया न सरे जांह दुख तांह पीड़।
एकण डांडे जुग गयो राजा रंक फकीर।
एक सिंहासन चढि़ चल्या एकण बंध्या जाय जंजीर।
दुर्लभ देशा गरजियो बूठो घट-घट मांहि।
बाहर थाते उबरिया भीगा मन्दिर रै मांहि।
छान पुराणी छज नवों चुय-चुय पड़े मंजीठ।
लाखों इला पर चेतिया जायर बसिया बैकुण्ठ।
नाव दिरावो देवजी जांसै उतरां पार।
'
ऊदोजनबोले बीणती म्हारां आवागवण निवार।

 

 

साखी (7)देवतणी परमोध में कस्मो समो न कोय।
सैंसो तो सारा सिरे अरू स्वर्गा में होय।
हाथ जोड़ सैंसो कहै मांगे सीख जमात।
घर आये को दीजिए सुण सैंसा यों बात।
एक बात मोसो कह्यो एक बात सौ बार।
मेरे घर  को जगत् गुरु जाणैं सब संसार।
आजस कर सैंसें कही देव न आई दाय।
सतगुरु आप पधारिया पत्री लिवी उठाय।
आवाज करी हरि आवंता भोजन हो सोईलाव।
सतगुरु उभा आंगण परखण आया भाव।
नारी सारी आंगणे कीया बैठी ठाट।
भिक्षा न घालै भावसुं उभा जोवै बाट।
लहणायत ज्युं क्यों खड्यो समझायो सौ वार।
कह्यो न माने सामियो है तो किसो विचार।
जर झार ठमको दियो नारी कियो जोर।
भनाय चला घर आपणे पत्री केरी कोर।
प्रभाते सैंसो आवियो देवतणे देवाण।
सुण सैंसा सतगुरु कह्यो ओ सहनाण पिछाण।
ओ पटंतरा सांभलो सैंसो गयो निधाय।
मूंधे मुंह सैंसो पडय़ो सांभल सकै न कोय।
सांथरिया कहे देव सुं म्हारी अर्ज सुनो सुरराय।
जेथे छोड़ो हाथ सुं जड़ामूल सें जाय।
उठ सैंसा सतगुरु कहे गर्व न करो लिगार।
जिण 'हरजीऐसे कही साच बड़ो संसार।
सैंसो तो सारा सिरे।।

 

 

साखी (8)सही विसवा बीससाचो गुरु समराथले।
कान्ह कुंवर नन्दलालकृपाकर आयो भले।
कृपाकर आयो भले नै,थली चरावै थाट।
परच्या ब्राह्मण बाणियां नेभोजग चारणभाट।
पवन छतीसों एकलसतगुरु ज्ञान दियो जगदीश।
चरण वन्दन  कर चलुजो लीनासही बिसवा बीस।
साचो गुरु समराथले। 1
पूरे गुरु परमोध सुपहसुमार्ग आणियां।
शोध्या जीव सुजीवमोक्ष मुक्त  दिस ताणियां।
मोक्ष मुक्त  दिस तांणिया नैकिया पर उपकार।
जाटां ऊपर झुक पड़ा नैहमकले अवतार।
जगी-जगी परसतिया नैराता  कलह रू क्रोध।
अड़क नर परचावियापूरे गुरु परमोध।
सुपह सुमार्ग आणियां। 2
प्रगट्यो पूरण भागसाचो गुरु समराथले।
दाख्यो आदू माघकृपा कर आयो भले।
कृपा कर आयो भले नैधणी ये सरोवर धाय।
भवसागर में डुबतां नै काढ़लिया गुरु सहाय।
और गुरां नै जंभगुरु में अन्तर हंसरू काग।
परम गुरु संसार आयोप्रगट्यो पूरण भाग।
साचो गुरु समराथले। 3
गुरु दीन्हीं मोक्ष बताय भव भव तो भूला फिरे।
रीज करी सुर रायमन इच्छा कारज सरे।
मन इच्छा कारज सरे नै,हरे जो पोते पाप।
भाव सु भक्तां गुरु मिलियाकलू पधारया आप।
पीपासर प्रगट्यो दई   देवजी आयो दाय।
घर लोहट के अवतार नै दीन्हीं मोक्ष बताय।
भव भव तो भूला फिरे। 4
गुरु किया निपट निहाल पाप करन्ता पालिया।
सत् त्रेता की चाल थरपण एकण थापिया।
थरपण एकण थापिया ने आप दियो गुरु ज्ञान।
विष्णु भणो बिश्नोईयां थे धरो जे स्वयम्भूं ध्यान।
शील सिनान सुचाल चालोमानो हक हलाल।
जन हरजी की बीणती गुरु किया निपट निहाल।
पाप करता पलिया। 5

 

 

साखी (9)निवण करू गुरु जंभने निरु निरमल भाव।
कर जोड़े बंधु चरण शीश निवाया निवाय।
निवण खिवण,सब सुं आदर भाव।
कह केशो सोई बड़ाजां में घण छिभाव।
आम फले नीचो निवैएरड ऊँचो जाय।
नुगर सुगर की पारखाकह केसो समझाय।
आवो मिलोसिवंरो सिरजन हार।
सतगुरु सत पंथ चालियोखरतर खाडाँ धार ।।2।।
जम्भेश्वर ज़िभिया जपौभीतर छोड़ विकार ।।3।।
संपती सिरजण हार कीविधि सुं सुण विचार ।।4।।
अवसरि ढील न कीजिएभलेन लाभै वार ।।5।।
जंभ राजा वांसै वहैतलबी कियो तियार ।।6।।
चहरी वस्तु न चाखियेउर पर तजि अहंकार ।।7।।
बाडे हूंता विछड्या जारी सतगुरु करसी सार।।8।।
सेरी सिवंरण प्राणीयां अंतर बड़ो आधार।।9।।
परनिंदा पापा सिरे भूली उठाये भार।।10।।
परलै होयसी पाप सुं मुरख सहसी मार।।11।।
पाछे ही पछतावछी पापा तणि पहार।।12।।

ओगण गारो आदमी इलारै उर भार।।13।।


कह "केशो" करणि करो पावो मोक्ष द्वार ।।14।।