ओं तीस दिन सूतक, पांच ऋतुवंती न्यारो।
सेरों करो स्नान, शील सन्तोष शुचि प्यारो ।।
द्विकाल सध्या करो, सांझ आरती गुण गावो।
होम हित चित प्रीत सू होय, बास बैकुण्ठ पावो ।।
पांणी बांणी ईन्धणी, दूध, इतना लीजै छाण ।
क्षमा दया हिरदै धरो, गुरू बतायो जाण ।।
चोरी निन्दा झूठ बरजियो, वाद न करणो कोय ।
अमावस्या व्रत राखणों, भजन विष्णु बतायो जोय।।
जीव दया पालणी, रूंख लीला नहि घावै ।
अजर जरै जीवत मरै , वै वास स्वर्ग ही पावै ।।
करै रसोई हाथ सो, आन सुं पला न लावै।
अमर रखावै थाट, बैल बधिया न करावै ।।
अमल तमाखू भांग मद्य सूं दूर ही भागै, मांसनै दूर ही त्यागै।
लील न लावै अंग, देखत दूर ही त्यागै ।।
-: दोहा :-
उणतीस धर्म की आखड़ी, हिरदै धरियो जोय ।
जाम्भे जी किरपा करी नाम विष्णोई होय ।।